Friday, August 6, 2010

शब्दों का कराहना


मेरी रगों में
खून नहीं
शब्द बहते हैं
मेरे दिल में कुरान की आयतें
गीता के उपदेश
रामायण की चोपाइयां
बाइबिल के उपदेश
बना लिए हैं अपना घर
मुझे पत्थर से चोट नहीं लगती
शब्द ही शब्दों को मारते हैं
और कराहते हैं
उम्र भर
इनका कोई
मरहम भी तो नहीं ।


12 comments:

  1. Jaise zubanki baat chheen lee aapne!

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  2. बहुत भाव पूर्ण अभिव्यक्ति

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  3. बहुत-बहुत शुक्रिया

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  4. बडी गहरी बात कह दी।

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  5. "shabd" ke sammaan mei
    keh di gayi sammaan-janak baat . . .
    abhivaadan .

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  6. bhut hi achchca likha hai aapne.. bhut ghara aur phir bhi bhut spashat.

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  7. मंगलवार 10 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  8. आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया

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