अनजाने मेघों की
परिचित सी दस्तक पर
यादों के तेरे
मैनें
दीप जलाये
न खोलूं किवड़िया
न खिड़की मैं खोलूं
पावस की बदली
पर सन्दों से छन कर
पलकों में मेरी
तेरे
सपने सजाये
आँखों में छलकें
या बूँद बन बरसें
पावस के मोती
मैनें अँजुर में भर कर
प्रीत पगे धागे से
दिल
में टंकाये
अम्बर की आहट पर
धरती की चौखट पर
उडती फुहारों ने
तालबद्ध हो कर
सपनीले सावन के
भीगे मिलन के
चारों दिशाओं में
गीत
मधुर गाये
उनींदी हवाओं ने
पागल घटाओं ने
बिजुरी के झूलों में
ऊँची सी पींग भर
हाथों में हाथ धर
फिर से मिलन के
सभी
वादे निभाए
अनजाने मेघों की
परिचित सी दस्तक पर
यादों के तेरे
मैनें दीप जलाये !