मेरे हाथों में फैली हैं
रेखों की
सैकडों
पगडन्डियाँ
दौड़ता है जिनमे भविष्य
रेंगते हैं सपने
मै स्वयं भटकी हूँ
उन रास्तों पर
जिन पर चल कर
कोई आया था.
अनंत आकाश में उड़ते हुए स्वछंद पंछियों के झुंड में शामिल एक नया पंछी .....जो अनुभूति रखता है इंसानियत के ,मानवता के मूल्यों की ,जो न सिर्फ कागज पर उतारता है ......अपने और दूसरों के भावों को ,दर्दों को बल्कि रंगों की दुनिया में ले जाता है उन भावनाओं को और चित्रित भी करता है !
Tuesday, November 10, 2009
Monday, November 9, 2009
पदचिन्ह
रेत पर बनाओ
चाहे कितने भी पदचिन्ह
पल भर में मिट जाते हैं
लेकिन पत्थर पर खिंची
महीन सी लकीर भी
बरसों रह जाती है
मत बनाओ अपना घरोंदा
रेत के टीलों पर
रहना ही है तो
धूल और धुँए के साथ
चट्टानों पर रहो
यह सही है कि
रेत में काँटे नहीं चुभते
पर जीवन तो सिर्फ
समंदर में ही बसता है
और समंदर में बसा जीवन ही
रेत के किनारे आकर हँसता है.
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