Tuesday, November 10, 2009

पगडन्डियाँ

मेरे हाथों में फैली हैं
रेखों की
सैकडों
पगडन्डियाँ
दौड़ता है जिनमे भविष्य
रेंगते हैं सपने
मै स्वयं भटकी हूँ
उन रास्तों पर
जिन पर चल कर
कोई आया था.

Monday, November 9, 2009

पदचिन्ह



रेत पर बनाओ
चाहे कितने भी पदचिन्ह
पल भर में मिट जाते हैं
लेकिन पत्थर पर खिंची
महीन सी लकीर भी
बरसों रह जाती है
मत बनाओ अपना घरोंदा
रेत के टीलों पर
रहना ही है तो
धूल और धुँए के साथ
चट्टानों पर रहो
यह सही है कि
रेत में काँटे नहीं चुभते
पर जीवन तो सिर्फ
समंदर में ही बसता है
और समंदर में बसा जीवन ही
रेत के किनारे आकर हँसता है.