अनंत आकाश में उड़ते हुए स्वछंद पंछियों के झुंड में शामिल एक नया पंछी .....जो अनुभूति रखता है इंसानियत के ,मानवता के मूल्यों की ,जो न सिर्फ कागज पर उतारता है ......अपने और दूसरों के भावों को ,दर्दों को बल्कि रंगों की दुनिया में ले जाता है उन भावनाओं को और चित्रित भी करता है !
Tuesday, November 27, 2012
Sunday, November 25, 2012
Sunday, November 11, 2012
Saturday, November 3, 2012
बहारें फिर से आयेगीं
शाम हुई हम धीरे-धीरे
चले नदी के तीरे-तीरे
आसमान के माथे देखो
कितनी गहरी पड़ीं लकीरें
पेड़ का पीला पाखर देखा
हमने हँस कर उस से पूछा
क्यूँ तुम इतने पीले-पीले
नैन तुम्हारे गीले-गीले
विदा बिछड़ने की अब आई
मौसम ने ले ली अंगडाई
साथ है छूटा अब उड़ लेगें
संग हवा के हम बिख्ररेगें
हवा तुनक गई बोली मैं तो
काम हूँ हरकारे का करती
दिन भर उडती ले कर तुमको
कभी यहाँ कभी वहां हूँ धरती
यही सृष्टि की रीत निराली
आज हुई जो खाली डाली
नए पात आएँगें उस पर
छाएगी उस पर खुशहाली
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