Sunday, November 13, 2011

बादल - पर्वत



मैं बादल 
तू पर्वत ही सही
तू लाख करे इंकार मगर
तुझसे मिलने मैं 
आऊंगा तो सही
तेरी हरी-भरी वादियों में 
छाऊँगा तो कहीं 
हर सुबह शबनम बन 
तेरी जुल्फों में 
मोतियों सा चमकूँगा
तेरे माथे को 
हौले से सहलाऊंगा
सरे शाम जब 
हवाएं सरसराएंगीं
मुझे साथ लिए आयेंगीं 
ठण्ड से कांपेंगीं
और आहिस्ते-आहिस्ते
तेरे आंचल में समा जाएँगी 
तब चुपके से 
तेरी सांसों को मैं सुनूंगा 
तू भी शायद 
मेरी धडकनों को गिन सके
मेरी पीर अगर बहेगी 
नीर बन कर  तो
तेरे अंदर भी तो 
दर्द के सोते बहेंगे
मेरे दिल में अगर 
बिजली की चमक है तो
तू भी तो लावा 
अपने दिल में लिए बैठी है
तू अचल-अडिग
कभी मुंह तो खोल
कुछ तो बोल
न आने दे वो घड़ी कि
तेरे अंदर का लावा दहक उठे और
मेरे अंदर की बिजली कहर ढा
हम दोनों को भस्म कर दे 

Sunday, August 14, 2011

पावस गीत




अनजाने मेघों की
परिचित सी दस्तक पर 
यादों के तेरे 
मैनें 
दीप जलाये

न खोलूं किवड़िया 
न खिड़की मैं खोलूं 
पावस की बदली 
पर सन्दों से छन कर 
पलकों में मेरी 
तेरे 
सपने सजाये

आँखों में छलकें 
या बूँद बन बरसें
पावस के मोती 
मैनें अँजुर में भर कर
प्रीत पगे धागे से 
दिल 
में टंकाये 

अम्बर की आहट पर 
धरती की चौखट पर
उडती फुहारों ने 
तालबद्ध हो कर 
सपनीले सावन के 
भीगे मिलन के 
चारों दिशाओं में 
गीत 
मधुर गाये

उनींदी हवाओं ने 
पागल घटाओं ने 
बिजुरी के झूलों में 
ऊँची सी पींग भर
हाथों में हाथ धर 
फिर से मिलन के 
सभी 
वादे निभाए 

अनजाने मेघों की
परिचित सी दस्तक पर 
यादों के तेरे 
मैनें दीप जलाये !

Wednesday, July 13, 2011

                  क्षणिकाएँ


खामोश रात के आँचल में गर सितारे ना होते
आसमान में पर चाँद के खूबसूरत नज़ारे ना होते
बरबाद रह जाता जिंदगी का सफर अगर
आप इस सफर में हमारे ना होते !

खामोशी भी कुछ कहती है
खामोशी की  भी जुबान होती है
सुनते हैं हम अपनी धडकनें ही खामोशी में
और जब धडकनें  ही खामोश हो जाए तब ?
खामोशी ही खामोशी तब रहती है !

कब दिन ढला , कब  शाम ढली
जब  रात हुई तब सोचा किए
वो कौन था जिसकी याद में
हम कभी रोया किए कभी तड़पा किए

Wednesday, June 22, 2011


      
         नव संदेश

वृक्षों ने फुनगी पर अपने
टाँग दिए हैं नव संदेश
तू जाग - जाग, ऐ मेरे देश ।

कहाँ गईं? सो गईं बहारें
देखो धरती में पडी दरारें
सो जाए कहीं न ये कलरव
खो जाए कहीं न ये पराग
तू जाग - जाग  , ऐ मेरे देश।

क्यों नहीं सोचता यह मानव?
क्या शेष  नहीं कुछ मानवता?
जब हम ही नहीं तो इस जीवन का
कुछ मोल भला फिर हो सकता?

न हमें भुला
तू हमें जिला
फैला दे जन-जन में संदेश
ऐ मेरे देश
ऐ मेरे देश
तू जाग - जाग ऐ मेरे देश ।
तू अरे जाग! ऐ मेरे देश ।

Saturday, May 21, 2011




बारिश की सुबह 



बारिश की एक सुबह सुहानी
इंद्रधनुष बैठा सुस्ताते
सोच रहा था आँख मूंद कर
सूरज दादा क्यों नहीं आते ?

सूरज दादा जब आएँगें 
तब ही तो मैं गाऊँगा
झूम उठेंगे नन्हें बच्चे
जब मैं नभ पर छाऊँगा ।

बादल की चादर को ताने
सूरज दादा थे अलसाए
सोच रहे थे इस मौसम में
क्यों न छुट्टी आज मनाएँ ।

तभी हवा के झौंके आए
बादल इधर-उधर छितराए
सूरज दादा फैंक के चादर
ले अंगड़ाई बाहर आए ।

बाहर आकर आसमान को
देख के हौले से मुस्काए
इंद्रधनुष भी लगा चमकने
सारे बच्चे खुश हो आए   
झट ले अपनी पतंग और चरखी
आसमान को रंगने आए ।

Saturday, May 14, 2011




सपनों की  पतंग 

आओ बच्चों तुम्हें सिखाएं
हम ऐसी एक पतंग बनाएं
सपनों का कागज हो जिसमें
अरमानों की डोर लगाएं 
देख हवा का रूख चुपके से 
बैठ पतंग पर खुद उड़ जाएं

आसमान पर उत्तर में है
चमकीला मनमोहक ध्रुव तारा
वहीं चांद  पे बैठी नानी 
देख रही होगी जग सारा ।

हम मामा के स्रंग बादल पर
आसमान की सैर करेंगें
मालपुए जो मामी देगीं
उनसे अपना पेट भरेंगें ।

नानी का चरखा कातेंगें
और सुनेंगें खूब कहानी
याद नहीं क्या आती सबकी
पूछेंगें , बतलाओ नानी ?

बिजली की शक्ति जानेंगें
बादल में पानी खोजेंगें
चंदा मामा से शीतलता
नानी से  हम तकली लेंगें ।

अरमानों की डोर में सबको
बांध धरा पर ले आएंगें
मामा-मामी , नानी सबकी
बात सभी को बतलाएंगें ।

जो भी बच्चा जब भी चाहे
अरमानों की डोर सजाए
सपनों की एक पतंग बना कर
आसमान में झट उड़ जाए ।

Wednesday, January 12, 2011

  
कैसे आता है वसंत ? 

कलियों के खिल जाने से
भौरों के गुन-गुन गाने से
और तितली के मंडराने से
फूलों में छाता है वसंत

सूरज की दिशा बदलने से
तिल-गुड़ का भोग लगाने से
और खिचड़ी पर्व मनाने से
बागों में गाता है वसंत

नव-गीत हवा के गाने से
किरणों के नभ पर छाने से
पंछी के पर फैलाने से
बन पतंग फहराता है वसंत

आमों में बौरें आने से
कोयल के कुहु-कुहु गाने से
और सरसों के लहराने से
मन को भरमाता है वसंत

पत्तों की सूखी कुटिया में
मोती सी चमकती बूंदों में
कोरों पर ठहरी शबनम में
भोले बचपन की आंखों में
नन्हें पैरों की छापों में
निश्छल भोली मुस्कानों में
गालों के गड्ढों में हॅंसकर
घुंघराले बालों में फॅंसकर
दलियानों में, खलियानों में
धूल भरी पगडंडी में
हौले से चलता-चलता
चोखट पर आता है वसंत
धरती पर गाता है वसंत
मन को पगलाता  है वसंत
जग में  छा जाता है वसंत

सच बोलो तो....
ऐसे आता है वसंत !
ऐसे आता है वसंत !


Saturday, January 1, 2011



नव वर्ष की शुभ कामनाएं


नव वर्ष के सूरज ने जब

अपनी आंखें खोलीं

दूर क्षितिज पर थिरक उठीं तब

नन्हीं किरणे भोली

पीपल के पत्तों पर मचलीं

मोती बन कर नीचे फिसलीं

अंजुर में भर कर वह मोती

मॉंग रहे हम आज दुआएं

मंगलमय हो  वर्ष आपका

बना रहे यह हर्ष आपका

2011