Sunday, November 25, 2012

माँ की याद

                                                                         


घर की देहरी 
माँ  का चूल्हा 
आज तलक भी कुछ नहीं भूला 


ईंट दरक गईं 
परत मुँह फेरे 
घास तले हैं दबी मुंडेरें 


आंगन लीपा 
मढ़ा मांडना 
याद करे हर कोना-कोना 


क्या तुम सोचीं 
क्या थी जल्दी  
भुनसारे  ही क्यूँ तुम चल दीं ?


6 comments:

  1. कोमल और भावुक कर देने वाली रचना..

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  2. Replies
    1. dil ko choo gai . Kyun meri maa chali gai

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    2. माँ कहीं नहीं गई ....
      जिस पल आपने उसे याद किया वो आपके पास , आपके साथ ही थी

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  3. नमस्कार .. आपकी कविताएँ दिल की गहराई से निकली अभिव्यक्ति है. सब एक से बढकर एक. नव वर्ष पर शुभकामना कि आपकी अभिव्यक्ति का रचना संसार हमें और देखने और पढने को मिले.

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  4. माँ और ओम ...दोनों शब्द मुझे एक जैसे लगते हैं...दोनों मंत्र जो हैं...

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