Thursday, December 23, 2010




रात बहुत ठंड थी
चाँद को पड़ गए पाले
धरा ने जला कर
सूरज का अलाव
उसके  हाथ सेंक डाले ।

Saturday, December 11, 2010

क्षितिज



क्षितिज 

जब धरा बढ़ी और गगन मिला
तब क्षितिज बना
क्षितिज अनंत और विशाल
इसका कोई ओर नहीं , कोई छोर नहीं
पर है गहन अस्तित्व
हर सुबह सूर्य वहीं से उगता है
और शाम ढले चांद समंदर के आगोश से
मुस्कुराता हुआ उठता है
आसमान से पंक्षी उड़ते हुए आते हैं और क्षितिज को छूते हुए
जाने कौन देश पहुँच जाते है
संसार को चलायमान होने का नाम क्षितिज है
धरा , गगन और पाताल होने का नाम क्षितिज है ।
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Friday, December 3, 2010



  मासूम चाहत

जब बादल नभ पर छाते हैं

जब  शबनम नगमें गाती है

जब बगुले पांत में उड.ते हैं

जब फूल  शूल में खिलते हैं

जब धानी चुनरी उड.ती है

जब पवन संदेशा लाती है 

जब पायल रुन - झुन करती है

जब झूला पींगे भरता है

तब दिल हौले से कहता है

 काश ! यहाँ तुम भी होते ,

 काश ! यहाँ तुम भी होते ।