अनंत आकाश में उड़ते हुए स्वछंद पंछियों के झुंड में शामिल एक नया पंछी .....जो अनुभूति रखता है इंसानियत के ,मानवता के मूल्यों की ,जो न सिर्फ कागज पर उतारता है ......अपने और दूसरों के भावों को ,दर्दों को बल्कि रंगों की दुनिया में ले जाता है उन भावनाओं को और चित्रित भी करता है !
Tuesday, January 5, 2010
ठहरा हुआ पानी
ठहरा हुआ पानी
ठहरे हुए पानी में हर चीज ठहर जाती है
ठहरे हुए पानी में परछाईं नज़र आती है !
ठहरे हुए पानी में वो चाँद नज़र आता है
तन्हाई से घबरा के जो पानी में छुप जाता है !
कभी-कभी मिलता है पल भर के लिए कोई हमें
पर उसकी याद हमें उम्र भर रह जाती है !
कौन किसकी याद में वेचैन रहा तमाम उम्र
यह बात उसके चेहरे की झुर्रियाँ कह जाती हैं !
राहे जिन्दगी कितनी मुश्किल से कट रही होगी
हाथ में फैली हुई सैकड़ों पगडंडियाँ बतलाती हैं !
चाँद के न होने का क्यों रात से हम शिकवा करें
बस एक सितारा भी हो तो रात हँस के गुजर जाती है !
थामे हुए पानी को कोई छुता नहीं ,पीता नहीं
कमबख्त कुमुदिनी वहां शान से मुस्काती है !
हम चाहते हैं कि आप हमें रुखसत करें रुसवा नहीं
वरना क्या है कि जिन्दगी एक दास्ताँ बन जाती है !
ठहरे हुए पानी में हर चीज ठहर जाती है
ठहरे हुए पानी में परछाईं नज़र आती है !
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