Saturday, November 3, 2012

बहारें फिर से आयेगीं


शाम हुई हम धीरे-धीरे 
चले नदी के तीरे-तीरे 
आसमान के माथे देखो 
कितनी गहरी पड़ीं लकीरें 

पेड़ का  पीला पाखर  देखा 
 हमने हँस कर उस से पूछा 
क्यूँ तुम इतने पीले-पीले 
नैन तुम्हारे गीले-गीले 


विदा बिछड़ने  की अब आई 
मौसम ने ले ली अंगडाई 
साथ है छूटा अब उड़ लेगें 
संग हवा के हम बिख्ररेगें 


हवा तुनक  गई बोली मैं तो 
काम हूँ हरकारे का करती 
दिन भर उडती ले कर तुमको 
कभी यहाँ कभी वहां हूँ धरती  


यही सृष्टि की रीत निराली 
आज हुई जो खाली डाली 
नए पात आएँगें उस पर 
छाएगी  उस पर खुशहाली 










7 comments:

  1. कल 04/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ..... हर मौसम की बात कह दी

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  3. अलग अलग मौसम ..
    अलग अलग बातें ..
    बहुत खूब

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  4. वाह....
    बहुत बहुत सुन्दर...

    अनु

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  5. दस दिश नव लय राग बहेंगे..

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  6. आशा से भरी बेहद सुन्दर रचना ....

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  7. बस यही जीवन है ....सुन्दर चित्रण

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