Wednesday, July 13, 2011

                  क्षणिकाएँ


खामोश रात के आँचल में गर सितारे ना होते
आसमान में पर चाँद के खूबसूरत नज़ारे ना होते
बरबाद रह जाता जिंदगी का सफर अगर
आप इस सफर में हमारे ना होते !

खामोशी भी कुछ कहती है
खामोशी की  भी जुबान होती है
सुनते हैं हम अपनी धडकनें ही खामोशी में
और जब धडकनें  ही खामोश हो जाए तब ?
खामोशी ही खामोशी तब रहती है !

कब दिन ढला , कब  शाम ढली
जब  रात हुई तब सोचा किए
वो कौन था जिसकी याद में
हम कभी रोया किए कभी तड़पा किए