Wednesday, December 16, 2009

याद तुम्हारी





चाहे कोई मौसम आये
चाहे कोई मौसम जाये
कैसी अद्भुत याद तुम्हारी
हर मौसम के साथ सताए

नीला अम्बर जब मुस्काए
सोंधी मिटटी खुशबु बन कर
संग गीत हवाओं के गाये
धानी चूनर ओढ़ धरा ले
कहीं दूर कोई ,बिरहा गाये
मेरा मन तब घुमड़-घुमड़ कर तुमको ही सुनना चाहे

चाहे कोई मौसम आये
चाहे कोई मौसम जाये
कैसी अद्भुत याद तुम्हारी
हर मौसम के साथ सताए

रात शरद की चाँद दूज का
छितराए काले बादल में
खुली अलक में , नम पलक में
आँखों के काले काजल में
बिछे धरा पे हरश्रृंगार में
दहके जलते हुए पलाश में
झर-झर झरते अमलताश में
पतझड़ के पत्तों सा नाजुक
मन दीवाना कटी पतंग सा
तुमको छूने , तुमको पाने साथ समय के उड़ता जाये

चाहे कोई मौसम आये
चाहे कोई मौसम जाये
कैसी अद्भुत याद तुम्हारी
हर मौसम के साथ सताए

Tuesday, November 10, 2009

पगडन्डियाँ

मेरे हाथों में फैली हैं
रेखों की
सैकडों
पगडन्डियाँ
दौड़ता है जिनमे भविष्य
रेंगते हैं सपने
मै स्वयं भटकी हूँ
उन रास्तों पर
जिन पर चल कर
कोई आया था.

Monday, November 9, 2009

पदचिन्ह



रेत पर बनाओ
चाहे कितने भी पदचिन्ह
पल भर में मिट जाते हैं
लेकिन पत्थर पर खिंची
महीन सी लकीर भी
बरसों रह जाती है
मत बनाओ अपना घरोंदा
रेत के टीलों पर
रहना ही है तो
धूल और धुँए के साथ
चट्टानों पर रहो
यह सही है कि
रेत में काँटे नहीं चुभते
पर जीवन तो सिर्फ
समंदर में ही बसता है
और समंदर में बसा जीवन ही
रेत के किनारे आकर हँसता है.