कैसे आता है वसंत ?
कलियों के खिल जाने से
भौरों के गुन-गुन गाने से
और तितली के मंडराने से
फूलों में छाता है वसंत
सूरज की दिशा बदलने से
तिल-गुड़ का भोग लगाने से
और खिचड़ी पर्व मनाने से
बागों में गाता है वसंत
नव-गीत हवा के गाने से
किरणों के नभ पर छाने से
पंछी के पर फैलाने से
बन पतंग फहराता है वसंत
आमों में बौरें आने से
कोयल के कुहु-कुहु गाने से
और सरसों के लहराने से
मन को भरमाता है वसंत
पत्तों की सूखी कुटिया में
मोती सी चमकती बूंदों में
कोरों पर ठहरी शबनम में
भोले बचपन की आंखों में
नन्हें पैरों की छापों में
निश्छल भोली मुस्कानों में
गालों के गड्ढों में हॅंसकर
घुंघराले बालों में फॅंसकर
दलियानों में, खलियानों में
धूल भरी पगडंडी में
हौले से चलता-चलता
चोखट पर आता है वसंत
धरती पर गाता है वसंत
मन को पगलाता है वसंत
जग में छा जाता है वसंत
सच बोलो तो....
ऐसे आता है वसंत !
ऐसे आता है वसंत !