Tuesday, November 27, 2012

खामोश चाँद




कल चाँद यहाँ भी आया था 
खामोश मगर कुछ कहता सा 
कुछ तुम्हें सुना कर आया था 
कुछ मुझे उलाहना देता सा .....



ना हवा कहीं , ना कोई बादल 
सूनी रात अकेली गुमसुम 
सोच रही थी कहाँ गए 
मेरे आँचल के सब जुगनू 
आसमान फैला कर बाँहें 
किसे बुलावा देता सा .....

Sunday, November 25, 2012

माँ की याद

                                                                         


घर की देहरी 
माँ  का चूल्हा 
आज तलक भी कुछ नहीं भूला 


ईंट दरक गईं 
परत मुँह फेरे 
घास तले हैं दबी मुंडेरें 


आंगन लीपा 
मढ़ा मांडना 
याद करे हर कोना-कोना 


क्या तुम सोचीं 
क्या थी जल्दी  
भुनसारे  ही क्यूँ तुम चल दीं ?


Sunday, November 11, 2012

शुभ दीपावली

                                                                     

माटी के दीपक ने खुशबू बिखेरी
जाग उठी  मावस की रात अँधेरी
चौबारे पर लग रहा  मोहक  कंदील
महक उठा आंगन और  सज गई देहरी



माँ ने घर लीपा है माड रही मांडने
कहीं पर सतिये धरे , कहीं रखें बुंदने
बाबूजी लाये हैं खील और बताशे
चौखट  पर हमने  टांग दिए फुंदने

दीवाली की शुभकामनायें ....

Saturday, November 3, 2012

बहारें फिर से आयेगीं


शाम हुई हम धीरे-धीरे 
चले नदी के तीरे-तीरे 
आसमान के माथे देखो 
कितनी गहरी पड़ीं लकीरें 

पेड़ का  पीला पाखर  देखा 
 हमने हँस कर उस से पूछा 
क्यूँ तुम इतने पीले-पीले 
नैन तुम्हारे गीले-गीले 


विदा बिछड़ने  की अब आई 
मौसम ने ले ली अंगडाई 
साथ है छूटा अब उड़ लेगें 
संग हवा के हम बिख्ररेगें 


हवा तुनक  गई बोली मैं तो 
काम हूँ हरकारे का करती 
दिन भर उडती ले कर तुमको 
कभी यहाँ कभी वहां हूँ धरती  


यही सृष्टि की रीत निराली 
आज हुई जो खाली डाली 
नए पात आएँगें उस पर 
छाएगी  उस पर खुशहाली 










Tuesday, October 30, 2012

जरुरी तो नहीं



तुम साथ चलो मेरे 
और बात करो मुझसे 
यह जरुरी तो नहीं 

तुम बात करो मुझसे 
और साथ चलो मेरे 
यह जरुरी तो नहीं 

जो घाटियों में गूंजें
वो गीत हो हमारे
यह जरुरी तो नहीं

जो गीत हों हमारे
वो घाटियों में गूंजें
यह जरुरी तो नहीं

जो बात हो जुबान पर
वही बात बसे  दिल में
यह जरूरी तो नहीं

और जो बात बसे  दिल में
वही बात हो जुबान पर
यह जरूरी तो नहीं

Saturday, October 20, 2012

एक शाम



कल मुझको पगडण्डी पर चलते
एक शाम मिली जो तन्हा थी
वो तन्हा थी मैं थी तन्हा
वो मुस्काई

मैं मुस्काई
वो मुस्काई
बस ! मौन हमारी भाषा थी

हवा थम गई , भूल के बहना
लगी कान में सबके कहना
एक शाम कुछ भटक गई है
पगडंडी पर अटक गई है

क्यूँ तन्हा तुम मैनें पूछा ?
क्यूँ तन्हा तुम उसने पूछा ?

गम मुझे कहीं था सपनों का
गम उसे कहीं था अपनों का

सूरज के संग दिन भर भटकी
सांझ हुई चौखट पर अटकी
अब वो मुझसे पूछ रहा है क्या मैं जाऊं ?

उसके माथे के तिनकों से
बालों को मैनें सुलझाया
दूबों के कोरों पर अटकी शबनम को
हौले से अंजुल में भर कर
उसकी आँखों को धुलवाया

मासूम कांपते अधरों ने
जब सूरज को अलविदा कहा
मेरा दिल रो कर बोला
क्यों तूने इतना दर्द सहा ?

वो सम्भल गई
बोली , सुन अपनी उमर गई

वह तन्हा थी , मैं थी तन्हा
पर नहीं अभी हम तन्हा थे
हम एक राह के राही थे
हम तन्हाई के साथी थे

Thursday, October 18, 2012

तुमसे मिल कर




तुमसे मिल कर 

तुमसे मिल कर मैनें जाना 
क्या होता है दर्द
कहाँ पर पाया जाता है 

तुमसे मिल कर मैनें माना
भरी आँख से कैसे कब 
मुस्काया जाता है 

साथ चले तब मैनें जाना 
सबको दिल का हाल नहीं 
बतलाया जाता है 

बिछड गये तब मैनें जाना 
दिल के   दर्द को हँस कर भी 
बहलाया जाता है 



Wednesday, August 15, 2012

ठहरा हुआ पानी




ठहरे हुए पानी में , हर चीज ठहर जाती है
ठहरे हुए पानी में , परछाईँ नजर आती है !

           ठहरे हुए पानी में , वो चाँद नजर आता है
           तन्हाई से घबरा कर , जो पानीमें छुप जाता है  !

कभी कभी मिलता है , पल भर के लिए कोई हमें
पर उसकी याद हमें , उम्र भर रह जाती है  !

         चाँद के ना होने का , क्यों रात से हम शिकवा करें
         बस एक सितारा भी हो , तो रात हँस के गुजर जाती है !


Friday, April 13, 2012




आसमान की सैर


आओ बच्चो तुम्हें सिखाएं
हम एक ऐसी पतंग बनाएं
सपनों का कागज हो उसमें
अरमानों की डोर लगाएँ
देख हवा का रुख , चुपके से
बैठ पतंग पर खुद उड़ जाएँ !


आसमान पर उत्तर में है
चमकीला मोहक ध्रुब तारा
वहीं चाँद के अंदर बैठी
नानी देख रही जग सारा

हम मामा के संग बादल पर
आसमान की सैर करेगें
मालपुए जो मामी देगीं
उनसे अपना पेट भरेगें

नानी का चरखा कातेगें
और सुनेगें खूब कहानी
याद नहीं क्या आती सबकी
पूछेगें , बतलाओ नानी ?

बिजली की शक्ति जानेगें
बादल में पानी खोजेगें
चंदा मामा से शीतलता
नानी से तकली हम लेगें

अरमानों की डोर में सबको
बाँध धरा पर ले आएँगें
मामा-मामी , नानी सबकी
बात सभी को बतलाएँगें

जो भी बच्चा , जब भी चाहे
अरमानों की डोर लगाए
सपनों की एक पतंग बना कर
आसमान में झट उड़ जाए !

Wednesday, February 29, 2012

आओ भुला दें




  आओ भुला दें गुजरी बातें , गुजरे लम्हे , गुजरे पल 
 तेज हवा में चिंदी-चिंदी हो कर उड़ गये गुजरे कल 
 लम्हा-लम्हा जी लो जीवन , समय पलट न आएगा 
 सुबह उगा जो तपता सूरज , शाम हुए जाता है ढल !

 पी लो अपनी आँख का आँसू , मोती बन कर टपकेगा 
 अगर जो छलका ,वहां फलक पर इन्द्रधनुष बन चमकेगा 
 कभी दुखों के बादल छायें , घबरा कर न रुक जाना 
 सुख का चंदा गहन रात में आसमान पर दमकेगा !

Saturday, January 14, 2012

पौष मेला




आओ बच्चों तुम्हें घुमाएँ
आसमान की सैर कराएँ
यहाँ चमकते बिजली जैसे
कनकौए से तुम्हें मिलाएं !

आज यहाँ पर पंछी जैसी
ढेर पतंगें डोल रही हैं
लहराती - बलखाती कितने
रंग फिजां में घोल रही हैं !

तुम सोचोगे बात हुई क्या
क्यों डोले हैं ये मतवाली ?
इन्द्रधनुष सी सात रंग की
बजा-बजा नभ में ताली !

तब तुम जानों आज धरा से
ये पौष मनाने आई हैं
रंग-बिरंगे परिधानों में
इन्द्रधनुष सी छाई हैं !

सोने जैसी चम-चम करतीं
चाँदी जैसी चमकीली
पलक झपकते नीचे आती
डोर कहीं जो होए ढीली !

संग हवा के उपर-नीचे
दायें-बाएं झट मुड़ जाएँ
आओ हम को छू कर देखो
बात-बात में धौंस दिखाएँ !

कभी लड़ाएं पेंच किसी से
कभी लहराती नीचे आयें
फिर सन्नाती उपर जाकर
मार झपट्टा काट गिराएँ !

सीना तान गर्व से अपना
बांध पुछल्ला है इतराती
वश में नहीं आज वे अपने
लपट-झपट कर उडती जाती !

इत्ता बड़ा आसमाँ फिर भी
आगे-पीछे एक न चलतीं
तितली जैसी फर-फर करतीं
कटती-गिरती फिर से उडती !

कभी पौष तो कभी वसंत में
कभी खिचड़ी  तो कभी अनंत में
बांध डोर ये झट उड़ जातीं
हंस कर सब त्यौहार मनाती !