Saturday, May 21, 2011




बारिश की सुबह 



बारिश की एक सुबह सुहानी
इंद्रधनुष बैठा सुस्ताते
सोच रहा था आँख मूंद कर
सूरज दादा क्यों नहीं आते ?

सूरज दादा जब आएँगें 
तब ही तो मैं गाऊँगा
झूम उठेंगे नन्हें बच्चे
जब मैं नभ पर छाऊँगा ।

बादल की चादर को ताने
सूरज दादा थे अलसाए
सोच रहे थे इस मौसम में
क्यों न छुट्टी आज मनाएँ ।

तभी हवा के झौंके आए
बादल इधर-उधर छितराए
सूरज दादा फैंक के चादर
ले अंगड़ाई बाहर आए ।

बाहर आकर आसमान को
देख के हौले से मुस्काए
इंद्रधनुष भी लगा चमकने
सारे बच्चे खुश हो आए   
झट ले अपनी पतंग और चरखी
आसमान को रंगने आए ।

Saturday, May 14, 2011




सपनों की  पतंग 

आओ बच्चों तुम्हें सिखाएं
हम ऐसी एक पतंग बनाएं
सपनों का कागज हो जिसमें
अरमानों की डोर लगाएं 
देख हवा का रूख चुपके से 
बैठ पतंग पर खुद उड़ जाएं

आसमान पर उत्तर में है
चमकीला मनमोहक ध्रुव तारा
वहीं चांद  पे बैठी नानी 
देख रही होगी जग सारा ।

हम मामा के स्रंग बादल पर
आसमान की सैर करेंगें
मालपुए जो मामी देगीं
उनसे अपना पेट भरेंगें ।

नानी का चरखा कातेंगें
और सुनेंगें खूब कहानी
याद नहीं क्या आती सबकी
पूछेंगें , बतलाओ नानी ?

बिजली की शक्ति जानेंगें
बादल में पानी खोजेंगें
चंदा मामा से शीतलता
नानी से  हम तकली लेंगें ।

अरमानों की डोर में सबको
बांध धरा पर ले आएंगें
मामा-मामी , नानी सबकी
बात सभी को बतलाएंगें ।

जो भी बच्चा जब भी चाहे
अरमानों की डोर सजाए
सपनों की एक पतंग बना कर
आसमान में झट उड़ जाए ।