Wednesday, December 16, 2009

याद तुम्हारी





चाहे कोई मौसम आये
चाहे कोई मौसम जाये
कैसी अद्भुत याद तुम्हारी
हर मौसम के साथ सताए

नीला अम्बर जब मुस्काए
सोंधी मिटटी खुशबु बन कर
संग गीत हवाओं के गाये
धानी चूनर ओढ़ धरा ले
कहीं दूर कोई ,बिरहा गाये
मेरा मन तब घुमड़-घुमड़ कर तुमको ही सुनना चाहे

चाहे कोई मौसम आये
चाहे कोई मौसम जाये
कैसी अद्भुत याद तुम्हारी
हर मौसम के साथ सताए

रात शरद की चाँद दूज का
छितराए काले बादल में
खुली अलक में , नम पलक में
आँखों के काले काजल में
बिछे धरा पे हरश्रृंगार में
दहके जलते हुए पलाश में
झर-झर झरते अमलताश में
पतझड़ के पत्तों सा नाजुक
मन दीवाना कटी पतंग सा
तुमको छूने , तुमको पाने साथ समय के उड़ता जाये

चाहे कोई मौसम आये
चाहे कोई मौसम जाये
कैसी अद्भुत याद तुम्हारी
हर मौसम के साथ सताए