Friday, August 27, 2010

दोस्ती कागज और कलम की



दोस्ती कागज और कलम से करो
अपने जज्.बात बयां कागज पर कलम से करो ।
गैरौं से शिकवा ,अपनों से शिकायत
किसी से धोखा , अपनों से मोहब्बत
जुबां से नहीं , बयां कागज पर , कलम से करो ।
जब जुबां न दे साथ तो उसे साकार
कागज पर कलम से करो ।
सुनो सबकी ,

देखो सब कुछ
पर दिल की बात बताओ न किसी को
जग बेगाना है

राई का पहाड. बना देता है
अपना है तो बस  कागज और कलम
चाहे उस पर कितना भी लिखो , कुछ भी लिखो
चाहे लिखो आँसू में भीगे अतीत को
खून से रिसते रिश्तों को

ये किसी को कुछ भी बताता  भी नहीं
मत रोको अपने जज्.बातों को
मत बनने दो भावनाओं का कैंसर
अक्षरों की शक्ल में
बहने दो भावों की निर्मल नदी को
निरंतर , निरंतर और निरंतर ।
इस जिंदगी के सफेद कागज  पर
उकेर दो
अपना अतीत , अपना वर्तमान ,अपना भविष्य
कल से डर कैसा ?
जब तुम  नहीं  तो तुम्हारी
हकीकत तो रहेगी ही ,जीते जी न सही
मर कर ही सही सामने तो आएगी !..

4 comments:

  1. Jag sach me begana hai...jab.jab dilki baat dil se kahi,jag hansayi hui!

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  2. बेहतर !! सुन्दर रचना !

    समय हों तो ज़रूर पढ़ें:
    पैसे से खलनायकी सफ़र कबाड़ का http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_26.html

    शहरोज़

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