मैं बादल
तू पर्वत ही सही
तू लाख करे इंकार मगर
तुझसे मिलने मैं
आऊंगा तो सही
तेरी हरी-भरी वादियों में
छाऊँगा तो कहीं
हर सुबह शबनम बन
तेरी जुल्फों में
मोतियों सा चमकूँगा
तेरे माथे को
हौले से सहलाऊंगा
सरे शाम जब
हवाएं सरसराएंगीं
मुझे साथ लिए आयेंगीं
ठण्ड से कांपेंगीं
और आहिस्ते-आहिस्ते
तेरे आंचल में समा जाएँगी
तब चुपके से
तेरी सांसों को मैं सुनूंगा
तू भी शायद
मेरी धडकनों को गिन सके
मेरी पीर अगर बहेगी
नीर बन कर तो
तेरे अंदर भी तो
दर्द के सोते बहेंगे
मेरे दिल में अगर
बिजली की चमक है तो
तू भी तो लावा
अपने दिल में लिए बैठी है
तू अचल-अडिग
कभी मुंह तो खोल
कुछ तो बोल
न आने दे वो घड़ी कि
तेरे अंदर का लावा दहक उठे और
मेरे अंदर की बिजली कहर ढा
हम दोनों को भस्म कर दे
बादलों की गरगराहट से पैदा होती बिजली, बचकर चला जाये।
ReplyDeleteसुन्दर भाव संजोये हैं।
ReplyDeleteमेरी पीर अगर बहेगी
ReplyDeleteनीर बन कर तो
तेरे अंदर भी तो
दर्द के सोते बहेंगे
खूबसूरत भाव... अच्छी प्रस्तुति
शुक्रिया उत्साह वर्धन के लिए ....
ReplyDeleteKya gazab kee rachana hai!
ReplyDelete