क्षितिज
जब धरा बढ़ी और गगन मिला
तब क्षितिज बना
क्षितिज अनंत और विशाल
इसका कोई ओर नहीं , कोई छोर नहीं
पर है गहन अस्तित्व
हर सुबह सूर्य वहीं से उगता है
और शाम ढले चांद समंदर के आगोश से
मुस्कुराता हुआ उठता है
आसमान से पंक्षी उड़ते हुए आते हैं और क्षितिज को छूते हुए
जाने कौन देश पहुँच जाते है
संसार को चलायमान होने का नाम क्षितिज है
धरा , गगन और पाताल होने का नाम क्षितिज है ।
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हमेशा की तरह सुंदर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteआप ने क्षितिज के बारे में इतनी सुन्दर कविता लिखी है.शब्दों का सुन्दर संयोजन और अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति पसदंआई .
ReplyDelete........................
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आभार
... sundar rachanaa !!!
ReplyDeletesundar prastuti
ReplyDeleteक्षितिज को परिभाषित करती रचना अच्छी लगी..
ReplyDeleteधरा, गगन और पाताल होने का नाम क्षितिज है।
ReplyDeleteक्षितिज की यह परिभाषा अच्छी लगी।
सुंदर बिम्ब। अच्छी रचना।
ReplyDeleteक्षितिज के बारे में खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है आपने . आभार .
ReplyDeleteगंभीर और सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसुंदर रचना . कभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग /shiva12877.blogspot.com पर भी आएं
ReplyDeletekshitij ki nayi paibhasha shabdon ki jadugari achhi lagi ,badhai
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