Saturday, December 11, 2010

क्षितिज



क्षितिज 

जब धरा बढ़ी और गगन मिला
तब क्षितिज बना
क्षितिज अनंत और विशाल
इसका कोई ओर नहीं , कोई छोर नहीं
पर है गहन अस्तित्व
हर सुबह सूर्य वहीं से उगता है
और शाम ढले चांद समंदर के आगोश से
मुस्कुराता हुआ उठता है
आसमान से पंक्षी उड़ते हुए आते हैं और क्षितिज को छूते हुए
जाने कौन देश पहुँच जाते है
संसार को चलायमान होने का नाम क्षितिज है
धरा , गगन और पाताल होने का नाम क्षितिज है ।
.

11 comments:

  1. हमेशा की तरह सुंदर अभिव्यक्ति...

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  2. आप ने क्षितिज के बारे में इतनी सुन्दर कविता लिखी है.शब्दों का सुन्दर संयोजन और अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति पसदंआई .
    ........................

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    आभार

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  3. क्षितिज को परिभाषित करती रचना अच्छी लगी..

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  4. धरा, गगन और पाताल होने का नाम क्षितिज है।

    क्षितिज की यह परिभाषा अच्छी लगी।

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  5. सुंदर बिम्ब। अच्छी रचना।

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  6. क्षितिज के बारे में खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है आपने . आभार .

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  7. गंभीर और सुन्दर भावाभिव्यक्ति...

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  8. सुंदर रचना . कभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग /shiva12877.blogspot.com पर भी आएं

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  9. kshitij ki nayi paibhasha shabdon ki jadugari achhi lagi ,badhai

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