Saturday, August 7, 2010

चुप का ताला

सबके सामने
मैं सूली पर चढा था ,
कुछ कह रहीं थीं तुम्हारी आँखें
पर
तुम्हारे ओंठों पर
चुप का
ताला पडा था!




.

5 comments:

  1. परिस्थितियों की लाचारी को बखूबी प्रस्‍तुत किया है आपने!!

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  2. थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कह दिया.

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  3. अनीता जी ,

    चर्चा मंच पर रोज ही कुछ चुनी हुई पोस्ट को दिया जाता है ..जिसके माध्यम से लोग उस ब्लॉग तक पहुंचाते हैं .....मंगलवार को साप्ताहिक काव्य मंच का आयोजन होता है ...जिसमें सप्ताह में अच्छी चुनी हुई पोस्ट कविताएँ ली जाति हैं और कुछ नए लोगों की अच्छी कविताओं को चुन कर लिया जाता है ....इस साप्ताहिक मंच को सजाने की ज़िम्मेदारी मेरी है ...मैंने आपकी रचना का चुनाव किया है ....आज का लिंक मैं भेज रही हूँ .....आप अपनी प्रतिक्रिया से अनुगृहित करें ..

    http://charchamanch.blogspot.com/2010/08/241.html

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