Saturday, November 27, 2010


  याद की खिड.की

कुदरत ने
मेरी इस जिंदगी में
तुम्हारी याद की
एक खिड.की बना दी
और बना दीं  सैंकडों पगडंडियाँ
कितने भी रास्ते बदलूँ
हर रास्ता,
तुम तक जा पहुँचता है!

8 comments:

  1. Aapki is rachana ne chand panktiyan yaad dila deen..." Hame milna hee hamdam,kisee raah bhee nikalte..."

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  2. छोटी किंतु गहरे अर्थ वाली कविता। बधाई...

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  3. यादें होती ही हैं ऐसी ही।

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  4. yeh to aman ka pegaam hai.sare dharam ek hi raste par le jate hai.

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  5. एक दार्शनिक रचना । मार्ग सैकडों हों मगर मंजिल एक ही है ।किसी भी रास्ते से चलो पहुंचेंगे वहां ही । एक बहुत छोटी सी रचना मगर अर्थ करने बैठे कोई तो ग्रंथ तैयार करदे

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  6. वाह....

    प्रेम और समर्पण की मनोहारी अभिव्यक्ति,मन बाँध गयी...

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