अनंत आकाश में उड़ते हुए स्वछंद पंछियों के झुंड में शामिल एक नया पंछी .....जो अनुभूति रखता है इंसानियत के ,मानवता के मूल्यों की ,जो न सिर्फ कागज पर उतारता है ......अपने और दूसरों के भावों को ,दर्दों को बल्कि रंगों की दुनिया में ले जाता है उन भावनाओं को और चित्रित भी करता है !
एक दार्शनिक रचना । मार्ग सैकडों हों मगर मंजिल एक ही है ।किसी भी रास्ते से चलो पहुंचेंगे वहां ही । एक बहुत छोटी सी रचना मगर अर्थ करने बैठे कोई तो ग्रंथ तैयार करदे
Aapki is rachana ne chand panktiyan yaad dila deen..." Hame milna hee hamdam,kisee raah bhee nikalte..."
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर। बधाई।
ReplyDeleteछोटी किंतु गहरे अर्थ वाली कविता। बधाई...
ReplyDeleteयादें होती ही हैं ऐसी ही।
ReplyDeleteyeh to aman ka pegaam hai.sare dharam ek hi raste par le jate hai.
ReplyDeleteएक दार्शनिक रचना । मार्ग सैकडों हों मगर मंजिल एक ही है ।किसी भी रास्ते से चलो पहुंचेंगे वहां ही । एक बहुत छोटी सी रचना मगर अर्थ करने बैठे कोई तो ग्रंथ तैयार करदे
ReplyDeleteवाह....
ReplyDeleteप्रेम और समर्पण की मनोहारी अभिव्यक्ति,मन बाँध गयी...