रिश्तों की परिभाषा
रिश्तों की सच्ची परिभाषा , हम तब जीवन में लाते
पैदा होते ही मिल जाते , जब ढेरों रिश्ते-नाते
रिश्ते होते सुख के - दुख के ,पीर बॉंटते - पीर मानते
एक सुनी आवाज कहीं तो ,छोड़ हाथ का काम भागते
जात न होती ,पांत न होती , छोटे -बड़े का भेद न होता
न को ऊँचा ,न कोई नीचा , कहीं क्षमा कहीं खेद न होता
कोई रोक न होती टोक न होती ,दिल ही कहता दिल ही सुनता
न कोई लम्हा दुख का होता , न मिलना और बिछड़ना होता
ऐसे पल जब हमको मिलते , तब ही सच्चा जीवन होता
न सुख तेरा न दुख मेरा , न बंधन इसका-उसका होता
रिश्तों की इस परिभाषा को , हम तब ही खुद में पाते
जब हम रिश्तों में और रिश्ते , हम में आकर बॅंध जाते
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...रिश्तों में बंध कर हर रिश्ते को निबाहना भी आना चाहिए
ReplyDeleteरिश्तों के बारे में बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति|
ReplyDeleteआपका स्वागत है, रिश्ते दर्पण की तरह होते हैं इनमे हम अपनी ही तस्वीर दिखती है, तो जो निभा ले वह भरा है जो नहीं निभा पाता वह अभी खुद ही तलाश रहा है,सुंदर रचना के लिये बधाई!
ReplyDeleteसुन्दर परिभाशा है। शुभकामनायें।
ReplyDeleteसुंदर रचना, साधुवाद...
ReplyDeleteआप सभी का हार्दिक अभिनंदन और दीपावली की शुभकामनाएं
ReplyDeleteसही है ये जो ढेर सारे रिश्ते मिलते है वे सब झूंठे है रिश्ता तो सच्चा वही है सुख दुख पीडा का । जब हम रिश्तो में और रिश्ते हम में बंध जाते है इस बात ने रचना को बहुत ही सार्थक बना दिया है। कही से पीडा की आवाज सुनते ही हाथ का काम छोड कर उसकी मदद को जाते मानव जीवन का लक्ष्य बताती रचना
ReplyDeleteसही कहा आपने - जब रिश्तों में नए रिश्तों में बंध जाते हैं तो हम खुद भी बंध जाते हैं ...शुभकामना
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteरिश्तों की इस परिभाषा को , हम तब ही खुद में पाते
ReplyDeleteजब हम रिश्तों में और रिश्ते , हम में आकर बॅंध जाते
...पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ पर सशक्त अभिव्यक्ति...बधाई.
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... bahut sundar !!!
ReplyDeleteवाह...क्या भाव हैं और क्या अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteमनमोहक अतिसुन्दर रचना...
बहुत सुंदर और मनमोहक कविता है दिल को छू गई ।
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