शाम हुई हम धीरे-धीरे
चले नदी के तीरे-तीरे
आसमान के माथे देखो
कितनी गहरी पड़ीं लकीरें
पेड़ का पीला पाखर देखा
हमने हँस कर उस से पूछा
क्यूँ तुम इतने पीले-पीले
नैन तुम्हारे गीले-गीले
विदा बिछड़ने की अब आई
मौसम ने ले ली अंगडाई
साथ है छूटा अब उड़ लेगें
संग हवा के हम बिख्ररेगें
हवा तुनक गई बोली मैं तो
काम हूँ हरकारे का करती
दिन भर उडती ले कर तुमको
कभी यहाँ कभी वहां हूँ धरती
यही सृष्टि की रीत निराली
आज हुई जो खाली डाली
नए पात आएँगें उस पर
छाएगी उस पर खुशहाली
कल 04/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ..... हर मौसम की बात कह दी
ReplyDeleteअलग अलग मौसम ..
ReplyDeleteअलग अलग बातें ..
बहुत खूब
वाह....
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर...
अनु
दस दिश नव लय राग बहेंगे..
ReplyDeleteआशा से भरी बेहद सुन्दर रचना ....
ReplyDeleteबस यही जीवन है ....सुन्दर चित्रण
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