Friday, June 11, 2010

तन्हा सफर




मैं सफर में थी
ऐसा नहीं कि मैंने तुम्हें याद न किया
तुम्हें खत न लिखे
मगर वो हवाएं न थीं
जो मेरी सांसों को उड़ा ले जातीं
वो हरकारा न था
जो मेरे खतों को तुम तक पहुंचाता
हर पल.हर क्षण
हर पत्ते .फूल और कण.कण में
तपती धूप और जलते पानी से
बनते बादल में छुपे सूरज में
सुनसान अंधेरे बियाबान , जंगल .पहाड़ों में
मैं हैरान थी
मैं सफर में थी
पर तुमसे दूर नहीं
शायद निगाहों से
पर मन से नहीं ।

6 comments:

  1. umda rachna...

    iianuii.blogspot.com

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  2. खूबसूरती से लिखे एहसास...

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  3. भावों की आकर्षक अभिव्यक्ति.....सुन्दर,सशक्त व सार्थक रचना..बधाई।

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  4. Bahut anoothi rachna hai!Pahli baar aapke blog pe aayi hun!

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  5. Bahut khoobsoorat rachna...aur parichay dene ka tareeqa bahut bha gaya!

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