Tuesday, November 10, 2009

पगडन्डियाँ

मेरे हाथों में फैली हैं
रेखों की
सैकडों
पगडन्डियाँ
दौड़ता है जिनमे भविष्य
रेंगते हैं सपने
मै स्वयं भटकी हूँ
उन रास्तों पर
जिन पर चल कर
कोई आया था.

1 comment:

  1. KAAM KI ABHIVYAKTI HAI YEH ... SACHMUCH HAATH KI RAKHAAON PAR JEEVAN EK PAGDANDI HAI ..

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