क्षणिकाएँ
खामोश रात के आँचल में गर सितारे ना होते
आसमान में पर चाँद के खूबसूरत नज़ारे ना होते
बरबाद रह जाता जिंदगी का सफर अगर
आप इस सफर में हमारे ना होते !
खामोशी भी कुछ कहती है
खामोशी की भी जुबान होती है
सुनते हैं हम अपनी धडकनें ही खामोशी में
और जब धडकनें ही खामोश हो जाए तब ?
खामोशी ही खामोशी तब रहती है !
कब दिन ढला , कब शाम ढली
जब रात हुई तब सोचा किए
वो कौन था जिसकी याद में
हम कभी रोया किए कभी तड़पा किए
वाह.. खूब लिखा है ...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteअच्छा प्रयास है।
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