अनंत आकाश में उड़ते हुए स्वछंद पंछियों के झुंड में शामिल एक नया पंछी .....जो अनुभूति रखता है इंसानियत के ,मानवता के मूल्यों की ,जो न सिर्फ कागज पर उतारता है ......अपने और दूसरों के भावों को ,दर्दों को बल्कि रंगों की दुनिया में ले जाता है उन भावनाओं को और चित्रित भी करता है !
Friday, June 11, 2010
तन्हा सफर
मैं सफर में थी
ऐसा नहीं कि मैंने तुम्हें याद न किया
तुम्हें खत न लिखे
मगर वो हवाएं न थीं
जो मेरी सांसों को उड़ा ले जातीं
वो हरकारा न था
जो मेरे खतों को तुम तक पहुंचाता
हर पल.हर क्षण
हर पत्ते .फूल और कण.कण में
तपती धूप और जलते पानी से
बनते बादल में छुपे सूरज में
सुनसान अंधेरे बियाबान , जंगल .पहाड़ों में
मैं हैरान थी
मैं सफर में थी
पर तुमसे दूर नहीं
शायद निगाहों से
पर मन से नहीं ।
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umda rachna...
ReplyDeleteiianuii.blogspot.com
खूबसूरती से लिखे एहसास...
ReplyDeleteभावों की आकर्षक अभिव्यक्ति.....सुन्दर,सशक्त व सार्थक रचना..बधाई।
ReplyDeletebahut khoob...
ReplyDeleteBahut anoothi rachna hai!Pahli baar aapke blog pe aayi hun!
ReplyDeleteBahut khoobsoorat rachna...aur parichay dene ka tareeqa bahut bha gaya!
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