Friday, August 27, 2010

दोस्ती कागज और कलम की



दोस्ती कागज और कलम से करो
अपने जज्.बात बयां कागज पर कलम से करो ।
गैरौं से शिकवा ,अपनों से शिकायत
किसी से धोखा , अपनों से मोहब्बत
जुबां से नहीं , बयां कागज पर , कलम से करो ।
जब जुबां न दे साथ तो उसे साकार
कागज पर कलम से करो ।
सुनो सबकी ,

देखो सब कुछ
पर दिल की बात बताओ न किसी को
जग बेगाना है

राई का पहाड. बना देता है
अपना है तो बस  कागज और कलम
चाहे उस पर कितना भी लिखो , कुछ भी लिखो
चाहे लिखो आँसू में भीगे अतीत को
खून से रिसते रिश्तों को

ये किसी को कुछ भी बताता  भी नहीं
मत रोको अपने जज्.बातों को
मत बनने दो भावनाओं का कैंसर
अक्षरों की शक्ल में
बहने दो भावों की निर्मल नदी को
निरंतर , निरंतर और निरंतर ।
इस जिंदगी के सफेद कागज  पर
उकेर दो
अपना अतीत , अपना वर्तमान ,अपना भविष्य
कल से डर कैसा ?
जब तुम  नहीं  तो तुम्हारी
हकीकत तो रहेगी ही ,जीते जी न सही
मर कर ही सही सामने तो आएगी !..

Thursday, August 19, 2010

पहला दीपक

गौधूलि की बेला में
जब
पहला दीपक जलता है
धड.कन हो जातीं क्यों बेकाबू
मन कहीं और
मचलता है ।
वो हाथ कहाँ
जिनसे पोंछूँ
मैं बहती आँखों के आँसू
वो बात कहाँ?
वो रात कहाँ?
बस तिल - तिल
मुरझाए गेसू ।

Saturday, August 7, 2010

चुप का ताला

सबके सामने
मैं सूली पर चढा था ,
कुछ कह रहीं थीं तुम्हारी आँखें
पर
तुम्हारे ओंठों पर
चुप का
ताला पडा था!




.

Friday, August 6, 2010

शब्दों का कराहना


मेरी रगों में
खून नहीं
शब्द बहते हैं
मेरे दिल में कुरान की आयतें
गीता के उपदेश
रामायण की चोपाइयां
बाइबिल के उपदेश
बना लिए हैं अपना घर
मुझे पत्थर से चोट नहीं लगती
शब्द ही शब्दों को मारते हैं
और कराहते हैं
उम्र भर
इनका कोई
मरहम भी तो नहीं ।


Tuesday, July 27, 2010

मेरी माँ

    मेरी माँ

छोटा सा एक नन्हा बच्चा
        छत पर बैठा सोच रहा था
काश कहीं जो मैं उड़ पाऊँ
        या फिर ऐसी पतंग बनाऊँ
आसमान से तुझको लाने
        बैठ पतंग पर मैं उड़ जाऊँ ।

सब कहते हैं तुम ऊपर हो
        इंद्रधनुष में या बादल में ?
चंदा के घर या तारों में ?
        बोलो तुमको कैसें पाऊँ ?

मुझको नीचे छोड़ गईं क्यों ?
        तुम चंदा के ठौर गईं क्यों ?
याद नहीं क्या आती मेरी ?
        आँखें नम न होती तेरीं ?

या तू मुझको साथ में लाती
        मुझको धरती जरा न भाती
तेरी चिट्टी न कोई पाती
        तू क्यों ऐसे मुझे रूलाती ?

आज पतंग पर मैं आऊँगा
       अगर वहाँ तुझको पाऊँगा
सच कहता हूँ मेरी माँ मैं
       बाँध पतंग में ले लाऊँगा ।

मैं तेरा नन्हा सा बेटा
      आज यहाँ पर गुम-सुम बैठा
सोच रहा एक पतंग बनाऊँ
      आसमान पर मैं उड़ जाऊँ
और अगर तुझको पा जाऊँ
      तुझे धरा पर वापस लाऊँ ।


The Girl with the Dragon Tattoo

Friday, June 11, 2010

तन्हा सफर




मैं सफर में थी
ऐसा नहीं कि मैंने तुम्हें याद न किया
तुम्हें खत न लिखे
मगर वो हवाएं न थीं
जो मेरी सांसों को उड़ा ले जातीं
वो हरकारा न था
जो मेरे खतों को तुम तक पहुंचाता
हर पल.हर क्षण
हर पत्ते .फूल और कण.कण में
तपती धूप और जलते पानी से
बनते बादल में छुपे सूरज में
सुनसान अंधेरे बियाबान , जंगल .पहाड़ों में
मैं हैरान थी
मैं सफर में थी
पर तुमसे दूर नहीं
शायद निगाहों से
पर मन से नहीं ।

Tuesday, January 5, 2010

ठहरा हुआ पानी




ठहरा हुआ पानी

ठहरे हुए पानी में हर चीज ठहर जाती है
ठहरे हुए पानी में परछाईं नज़र आती है !

ठहरे हुए पानी में वो चाँद नज़र आता है
तन्हाई से घबरा के जो पानी में छुप जाता है !

कभी-कभी मिलता है पल भर के लिए कोई हमें
पर उसकी याद हमें उम्र भर रह जाती है !

कौन किसकी याद में वेचैन रहा तमाम उम्र
यह बात उसके चेहरे की झुर्रियाँ कह जाती हैं !

राहे जिन्दगी कितनी मुश्किल से कट रही होगी
हाथ में फैली हुई सैकड़ों पगडंडियाँ बतलाती हैं !

चाँद के न होने का क्यों रात से हम शिकवा करें
बस एक सितारा भी हो तो रात हँस के गुजर जाती है !

थामे हुए पानी को कोई छुता नहीं ,पीता नहीं
कमबख्त कुमुदिनी वहां शान से मुस्काती है !

हम चाहते हैं कि आप हमें रुखसत करें रुसवा नहीं
वरना क्या है कि जिन्दगी एक दास्ताँ बन जाती है !

ठहरे हुए पानी में हर चीज ठहर जाती है
ठहरे हुए पानी में परछाईं नज़र आती है !

Wednesday, December 16, 2009

याद तुम्हारी





चाहे कोई मौसम आये
चाहे कोई मौसम जाये
कैसी अद्भुत याद तुम्हारी
हर मौसम के साथ सताए

नीला अम्बर जब मुस्काए
सोंधी मिटटी खुशबु बन कर
संग गीत हवाओं के गाये
धानी चूनर ओढ़ धरा ले
कहीं दूर कोई ,बिरहा गाये
मेरा मन तब घुमड़-घुमड़ कर तुमको ही सुनना चाहे

चाहे कोई मौसम आये
चाहे कोई मौसम जाये
कैसी अद्भुत याद तुम्हारी
हर मौसम के साथ सताए

रात शरद की चाँद दूज का
छितराए काले बादल में
खुली अलक में , नम पलक में
आँखों के काले काजल में
बिछे धरा पे हरश्रृंगार में
दहके जलते हुए पलाश में
झर-झर झरते अमलताश में
पतझड़ के पत्तों सा नाजुक
मन दीवाना कटी पतंग सा
तुमको छूने , तुमको पाने साथ समय के उड़ता जाये

चाहे कोई मौसम आये
चाहे कोई मौसम जाये
कैसी अद्भुत याद तुम्हारी
हर मौसम के साथ सताए

Tuesday, November 10, 2009

पगडन्डियाँ

मेरे हाथों में फैली हैं
रेखों की
सैकडों
पगडन्डियाँ
दौड़ता है जिनमे भविष्य
रेंगते हैं सपने
मै स्वयं भटकी हूँ
उन रास्तों पर
जिन पर चल कर
कोई आया था.

Monday, November 9, 2009

पदचिन्ह



रेत पर बनाओ
चाहे कितने भी पदचिन्ह
पल भर में मिट जाते हैं
लेकिन पत्थर पर खिंची
महीन सी लकीर भी
बरसों रह जाती है
मत बनाओ अपना घरोंदा
रेत के टीलों पर
रहना ही है तो
धूल और धुँए के साथ
चट्टानों पर रहो
यह सही है कि
रेत में काँटे नहीं चुभते
पर जीवन तो सिर्फ
समंदर में ही बसता है
और समंदर में बसा जीवन ही
रेत के किनारे आकर हँसता है.