Friday, June 11, 2010

तन्हा सफर




मैं सफर में थी
ऐसा नहीं कि मैंने तुम्हें याद न किया
तुम्हें खत न लिखे
मगर वो हवाएं न थीं
जो मेरी सांसों को उड़ा ले जातीं
वो हरकारा न था
जो मेरे खतों को तुम तक पहुंचाता
हर पल.हर क्षण
हर पत्ते .फूल और कण.कण में
तपती धूप और जलते पानी से
बनते बादल में छुपे सूरज में
सुनसान अंधेरे बियाबान , जंगल .पहाड़ों में
मैं हैरान थी
मैं सफर में थी
पर तुमसे दूर नहीं
शायद निगाहों से
पर मन से नहीं ।